क्या आपकी कुंडली में विदेश यात्रा का योग है ?

क्या आपकी कुंडली में विदेश यात्रा का योग है ?


नमस्कार मित्रों!

आज हम कुण्डली में विदेश यात्रा के योग की चर्चा करेंगे | हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक श्री राहुल सांस्कृत्यायन ने अपने लेख "अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा" में लिखा है की अगर भारतीयों में विदेश जाने की प्रवृत्ति होती तो आज पूरा विश्व भारतमय होता| तो क्या क्या  मान लिया जाये की कभी भारतीय विदेश गए ही नहीं ? अगर विदेश नहीं गए तो सनातन धर्म की शाखाएं बटबृक्ष की तरह विश्व में कैसे फैली थी ?

वास्तव में किसी ज़माने में विदेश यात्रा बहुत ही दुरूह कार्य हुआ करती थी| पवित्र भारत भूमि जिसे शाष्त्रो में कर्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है, को छोड़कर विदेश में बसने को पहले बहुत अच्छा नहीं माना जाता था|  

क्या हर कोई विदेश जा सकता है ? देखने में आता है कि बहुत से लोग चाहकर भी नहीं जा सके| बहुत से लोग न चाहते हुए भी विदेश यात्रा पर गए| अब सवाल उठता है की कैसे पता चले की कौन जा विदेश जा सकता है और कौन नहीं?

आइये हम देखते हैं की हमारा वैदिक ज्योतिष विज्ञान इस प्रश्न पर हमारा मार्ग दर्शन कैसे करता है|

जैसा की हम जानते हैं की मनुष्य की जन्म पत्रिका उसके जीवन का एक रोडमैप होता है जिसको डिकोड करके ज्योतिषी लोग बहुत कुछ जान पाते हैं| जिस तरह से विदेश जाने के कई कारण हो सकते हैं जैसे की पढाई, नौकरी, घूमना, इलाज करवाने जाना या किसी सजा के तौर पर देश छोड़कर भागना इत्यादि| इन सब अलग अलग प्रयोजनों के लिए कुंडली के अलग अलग भाव जिम्मेदार होते हैं| इस लिए आइये हम विदेश यात्रा से सम्बंधित भावों की चर्चा करते हैं|

 १- बारहवाँ भाव - कुंडली का बारहवाँ भाव विदेश को दर्शाता है| हालाँकि इसके और भी कार्य होते हैं जैसे की मोक्ष, जेल यात्रा, हॉस्पिटल जाना या शैया सुख इत्यादि| इसलिए फल कथन में बाकी परिस्थितियों का अध्ययन करके सावधानी पूर्वक निर्णय लें|

२ - तीसरा भाव छोटी यात्राओं को दिखाता है|

 ३- चौथा भाव- मनुष्य का घर, सुख और माता को दर्शाता है| यह विद्या प्राप्ति की भी दिखाता है|

४- पांचवां भाव - उच्च शिक्षा का भाव या प्रेम की भाव है|

५- छठवाँ भाव - रोग रिपु या ऋण का भाव है| यही बीमारी का भी भाव है| 

६- सातवां भाव - यात्रा साझेदारी या जीवन साथी का भाव है

७- आठवां भाव - जीवन में होने वाली आकस्मिक घटनाओं, मृत्यु या पाताल का भी भाव है

८- नौवां भाव - धार्मिक यात्राओं का भाव, पिता का भाव है या भाग्य का भाव है|

९- दसवां भाव - कर्म का भाव है

११-ग्यारहवां भाव - लाभ या आय का भाव है

 जिस भी भाव के स्वामी बारहवें भाव से सम्बन्ध बनाते हैं उसी वजह से व्यक्ति की विदेश यात्रा करनी पड़ती है| उदाहरण के तौर पर अगर दसवें और ग्यारहवें भाव के स्वामी अगर बारहवें भाव में बैठे हो तो जातक को नौकरी के सिलसिले में बाहर जाना पड़ता है|

अगर पंचम या नवम के स्वामी बारहवें भाव से सम्बन्ध बनाते है तो जातक उच्चा शिक्षा या तीर्थ यात्रा के सिलसिले में विदेश यात्रा करता है|

अगर पंचम और सातवें भाव के स्वामी से बारहवें भाव का स्वामी सम्बन्ध बनाये तो पढाई के साथ विदेश में प्रेम या विवाह की भी सम्भावना भी बनती है|

अगर छठवें भाव के स्वामी बारहवें से सम्बंधित हो तो इलाज के लिए जाना पड़ सकता है और अष्टम का भी हो अचानक से किसी कारण बस|

इन भावों में स्थित राशियों और उन पर पड़ने वाले शुभ या क्रूर ग्रहो की दृष्टि से विदेश यात्रा की सफलता का फल कथन किया जाता है| अगर शुभ ग्रहो की दृष्टि है युति है तो अच्छे परिणाम मिलते हैं अगर क्रूर ग्रहों से सम्बन्ध हो या उनकी दशाएं चल रही हों  तो संघर्ष के बाद सफलता मिलती है| राशियों और नक्षत्रो के अपने प्रभाव होते हैं|

इन सबके साथ चतुर्थ भाव का पीड़ित होना भी विदेश यात्रा का एक आवश्यक कारण है|

आइये हम निम्न  कुंडली का अध्ययन करते हैं|



इस पत्रिका में बारहवें भाव का स्वामी बुध अपनी उच्च राशि कन्या में बारहवें भाव में और नवें भाव में स्थित द्वितीयेश और सप्तमेश मंगल के चित्र नक्षत्र में बैठा है| कन्या एक वाणिज्य की राशि है| चित्रा एक क्रिएटिव नक्षत्र है| मंगल की चौथी दृष्टि भी बारहवें भाव पर है|

ग्यारहवें भाव का स्वामी सूर्य भी दशमेश चद्रमा के हस्त नक्षत्र में बारहवे भाव में बैठा है| हस्त नक्षत्र भी एक शुभ नक्षत्र माना जाता है जो जातक में खुद से प्रयास की प्रवृत्ति दिखता है| इस तरह से कर्मेश और और लाभेश का बारहवे भाव से सम्बन्ध बन गया जिसमे कर्म करने से लाभ की सम्भावना बनती है|

तृतीयेश और षष्टेश गुरु जो कि द्वादशेश बुध के रेवती नक्षत्र में है, की दृष्टि भी द्वादश भाव पर है| गुरु द्वितीय, पंचम, नवम और लाभ भाव का कारक है अतः उसकी दृष्टि भी विदेश से सम्बन्ध बनाती है|

इसके अलावा चतुर्थ और पंचम का स्वामी योग करक शनि जो की कर्मेश चन्द्रमा की राशि में बैठा है, अपनी तीसरी दृष्टि से द्वादश भाव को देख रहा है| चन्द्रमा खुद द्वादशेश बुध के अश्लेषा नक्षत्र में स्थित है|

इस तरह से हम गौर करें तो एक समझ में आती है पूरी कुंडली नवमेश और द्वादशेश बुध के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण में है| ज्यादातर ग्रह बारहवे भाव से सम्बन्ध बना रहे हैं| हालाँकि चतुर्थेश शनि का दसम भाव में होकर चौथे भाव पर दृष्टि रखना जातक को बाहर बसने नहीं देगा बस कार्य के सिलसिले में विदेश यात्रा करवाएगा| प्राप्त जानकारी के अनुसार यह जातक अभी तक दो बार ऑफिस के काम से विदेश यात्रा कर चुका है| इस जातक ने बताया की बचपन में एक ज्योतिषी ने जब इसको विदेश यात्रा के बारे में बताया था तो इसको विश्वास नहीं हुआ था| 

इसी तरह से किसी भी कुंडली का विश्लेषण किया जा सकता है|


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