अष्टकवर्ग से कैसे आसानी से भविष्यफल जाने ?

अष्टकवर्ग से कैसे आसानी से भविष्यफल जाने ?



मनुष्य आदिकाल से भविष्य में होने या होने वाली घटनाओ का पता लगाने की कोशिश कर रहा है| इस विषय में भारतीय ऋषियों ने अकाट्य प्रमाण के साथ अनेक सूत्र हमारे "ज्योतिष विज्ञान" के ग्रंथो में दिए हैं जिनको जानकर वर्तमान के वैज्ञानिक युग में भी लोग आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहते|

वैसे तो भारतीय ज्योतिष में अनेक विधाएँ हैं जैसे की परासरी ज्योतिष, नाड़ी ज्योतिष, जैमिनी ज्योतिष इत्यादि जो अलग अलग सूत्रों को लिए हुए भी कमोबेश एक जैसे फलित करती हैं| उन्ही पद्धतियों  में एक अष्टकवर्ग पद्धति है जिसका विकास महर्षि परासर ने एक सरल विधा के रूप में किया हैं| जो व्यक्ति ज्योतिष के गूढ़ सूत्रों को नहीं जानता वह भी इस विधि से काफी कुछ फलित कर सकता है|

आइये अब हम आपको इस विधि के कुछ मूलभूत सिद्धांतो की चर्चा करते हैं| इस सूत्र के अनुसार हर ग्रह अपने जन्म लग्न में अपनी स्थिति के अनुसार तो शुभ प्रभाव देता ही है साथ के साथ दूसरे ग्रहो की स्थिति के सापेक्ष भी शुभ प्रभाव प्रदान करता है| इन सभी प्रभावों को अंको में जोड़कर एक संयुक्त तालिका बना ली जाती है और उसी के अनुसार ग्रहों के गोचर का शुभ अथवा अशुभ फल देने की क्षमता का आंकलन किया जाता है| आज के कंप्यूटर के युग में किसी भी ज्योतिष के वेबसाइट या ऐप पर यह गणना आसानी से उपलब्ध हो जाती है| जातक को बस अपना जन्म तारीख, समय और जगह देना होता है| इस लिए हम गणना की विधि की चर्चा करत्ते हुए सीधा फल कथन के सिद्धांत पर आते हैं|

जब आप ऐप या कंप्यूटर पर उपरोक्त जानकारी डालते हैं तो आपको कुछ इस तरह की कुंडली मिलेगी जिसमे हर भाव में कुछ अंक लिखे मिलेंगे| आइये अब इन अंको से फलित करने की आसान विधि की चर्चा करते हैं|

 

 

) जिस भाव या राशि में 30 से अधिक बिन्दु होंगे उस भाव के अच्छे परिणाम जीवन में देखने को मिलेंगे| इसके विपरीत जिन भावो के २५ से कम अंक होंगे उनके उतने अच्छे फल नहीं मिलते| २५ से ३० अंक के बीच मध्यम  फल की संभावना रहती हैं|

) कम बिन्दुओं वाले भावो में बैठे ग्रह अपना पूर्ण फल नहीं दे पाते भले ही वे अपनी उच्च या मूलत्रिकोण राशियों में बैठे हों|

) अधिक बिन्दुओं वाले भावो में बैठे ग्रह अच्छा फल देते हैं चाहे वे अपनी नीच राशियों में ही बैठे हों|

) यदि लग्न, ९वै, १०वें और ११वै भाव में ३० से अधिक विन्दु हों तो जातक का जीवन समृद्धि पूर्ण होता हैं| २५ से कम होने पर संघर्ष की स्थिति रहती हैं|

ग्यारहवें भाव में दसवेंसे अधिक बिन्दु होने पर साथ में लग्न में बारहवें भाव से ज्यादा बिन्दु होने पर मेहनत से ज्यादा अच्छे परिणाम मिलते हैं और जीवन समृद्धि रहता है 

) जिन भावों में २१ बिंदु या उससे कम हों उन पर से जब भी कोई अशुभ ग्रह गोचर करता हैं तो उस भाव से सम्बंधित फलों की हानि होती है|

) जिस भी भाव में ३० से अधिक बिंदु हों उस पर किसी भी ग्रह के गोचर से अच्छे फल मिलते हैं|

) जब किसी भाव में कम बिंदु हों किन्तु वहां पर शुभ ग्रह हों तो उस भाव की कमी पूरी हों जाती हैं|

) सामान्यतया लोग साढ़े साती से डरते हैं| जबकि अगर चन्द्रमा से बारहवें, प्रथम और द्वादस भावों में ३० से अधिक  बिंदु हों तो जातक की साढ़े साती बहुत शुभदायी होगी| इसके बिपरीत अगर २३ या उससे काम बिंदु हुए तो समय ख़राब जायेगा| अगर तीनों भावो में एक सामान अंक नहीं हुए तो सातों साल एक जैसे नहीं होंगे| जिसमे कम उसमे ख़राब और जिसमे ज्यादा उसमे अच्छे फल मिलेंगे|

आइये हम अब कुछ उदाहरण पर चर्चा करते हैं| निम्न कुंडली में देखें तो आप पाएंगे की श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ६ठवें प्रतियोगिता के भाव में ३४ बिंदु, १०वे से लेकर १२वें भाव तक ३० से अधिक बिंदु सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बनाते हैं| साथ में दूसरे भाव के २९ बिंदु और सूर्य, बुध और गुरु की युति उनके भाषण कला में अजेय बनाती हैं| 



दूसरी कुंडली श्री राजीव गाँधी की देखें सभी उपचय भावों में ३० से अधिक बिंदु|  लाभ भाव में ५० बिंदु जहां अप्रत्यासित उतार चढ़ाव को दिखा रहे हैं वही ७वें भाव में सिर्फ १९ बिंदु जीवनसाथी और मित्रो से अल्प सुख को दिखा रहे हैं| 


ध्यान दें-  सिर्फ सर्वाष्टक बिंदु देखकर फल कथन न करें| कुंडली में मौजूद राजयोगों और धनयोगों को भी देखें| अष्टकवर्ग उन्ही योगों को सुदृढ़ करेगा जो कुंडली में उपस्थित हैं| 

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