आपकी कुंडली का मुख्य ग्रह कौन सा है? (Key planets of your horoscope)

आपकी कुंडली का मुख्य ग्रह कौन सा है? (Key planets of your horoscope)

आमतौर पर सभी को यह जानने की उत्सुकता रहती है की उनका भविष्य कैसे रहेगा| मानव जीवन का रोडमैप कुंडली में योगकारक ग्रहों के बल और उनकी स्थिति पर निर्भर करता है| इसे ही कुंडली का मुख्य ग्रह कहा जाता है|  किसी कुंडली में अगर कोई अकारक ग्रह उच्च का भी हो तो बहुत अच्छे परिणाम नहीं मिलते| हर आदमी की कुंडली मे योगकारक ग्रह अलग अलग हो सकते हैं| इस लिए अलग अलग लग्न के लिए बिभिन्न ग्रहों की के बारे में हम बात करेंगे|

जैसा की आपने पहले के अध्याय में देखा होगा की कुंडली के पहले भाव को लग्न कहते हैं| इसी तरह से कुंडली के सभी बारह भावों के अपने स्वामी होते हैं| इसमें सूर्य और चन्द्रमा एक एक भाव के और बाकी ग्रह दो-दो भावों के स्वामी होते हैं| 

आगे बढ़ने से पहले निम्न नियमों को समझ लेना जरूरी है|

१- पहला, पांचवां और नौवां भाव त्रिकोण कहलाता है| इसके स्वामी हमेशा शुभ होते हैं|

२- पहला, चौथा, सातवां और दसवां भाव केंद्र कहलाता है| इस तरह से पहला भाव केंद्र और त्रिकोण दोनों होता है| चौथे सातवें और दसवें भाव के स्वामियों पर केन्द्राधिपति दोष लगता है| जिसमे शुभ ग्रह अपनी शुभता और क्रूर ग्रह अपनी क्रूरता कायम नहीं रख पाते और सम बन जाते हैं|

३- तीसरे, छठें और ग्यारहवें भाव को त्रिषडाय भाव बोला जाता है| इनके स्वामी अशुभ माने जाते हैं|

४- छठें, आठवां और बारहवें भाव को दुःस्थान कहा जाता है| इनके स्वामियों को अशुभ माना जाता है| अगर किसी दुःस्थान का स्वामी त्रिषडाय से सम्बन्ध बना ले तो उसकी अशुभता में वृद्धि हो जाती है| उदाहरणार्थ यदि अष्टमेश, त्रिषडायेश भी हो तो और पापी हो जाता है| इस स्थिति में यदि अष्टमेश नैसर्गिक पापी ग्रह हो तो और पापी हो जाता है और अगर नैसर्गिक शुभ ग्रह हो तो उसकी शुभता में कमी आ जाती है|    

५- दूसरे और सातवें भाव को मारक कहते हैं| इनके स्वामियों को भी अशुभ माना जाता है| 

६- चर लग्न में ग्यारहवां, स्थिर लग्न में नौवां और द्विस्वभाव लग्न में सातवां भाव बाधक होता है| इनके स्वामियों को भी अशुभ माना जाता है|       

७ शुभ ग्रह जिस भाव में बैठते हैं उसकी वृद्धि करते हैं और क्रूर ग्रह जिस भाव में बैठते हैं उसका नुकसान करते हैं|          

8- अगर कोई ग्रह केंद्र और त्रिकोण दोनों का स्वामी हो तो उसे योग कारक ग्रह कहते हैं|

मेष लग्न

अगर आपकी कुंडली के पहले भाव में १ संख्या लिखी है तो आप मेष लग्न के हैं|



मेष लग्न में बिभिन्न भाव के स्वामियों की स्थिति इस तरह होती है|

लग्न

राशि/भाव

शुभ ग्रह

त्रिषडायेश

दुःस्थान के स्वामी

मारक

बाधक

योगकारक

 

1

1, 5, 9

3,6,11

6,8,12

2,7

11,9,7

 

मेष

1

मंगल सूर्य गुरु

बुध और शनि

बुध

शुक्र

शनि

-

मंगल और गुरु लग्नेश और त्रिकोणेश होने की वजह से दुःस्थानो के स्वामी होते हुए भी शुभ हैं|

शनि त्रिषडायेश और बाधकेश होने के कारण अति अशुभ है और शुक्र मारक है|

चन्द्रमा केन्द्राधिपति दोष में होने के कारण मिश्रित फल देगा|

बृष लग्न

अगर आपकी कुंडली के पहले भाव में 2 संख्या लिखी है तो आप वृष लग्न के हैं|



वृष लग्न में बिभिन्न भाव के स्वामियों की स्थिति इस तरह होती है|

लग्न

राशि/भाव

शुभ ग्रह

त्रिषडायेश

दुःस्थान के स्वामी

मारक

बाधक

योगकारक

 

1

1, 5, 9

3,6,11

6,8,12

2,7

11,9,7

 

वृष

2

शुक्र, बुध शनि

चन्द्रमा, गुरु

मंगल और गुरु

मंगल

 

शनि

शुक्र, बुध और शनि  केंद्र और त्रिकोण के स्वामी होने के कारण शुभ हैं|

स्थिर लग्न होने के कारण शनि बाधक होता है लेकिन योगकारक होने की वजह से मारक नहीं माना जाता|


मिथुन लग्न   

अगर आपकी कुंडली के पहले भाव में 3 संख्या लिखी है तो आप मिथुन लग्न के हैं|

मिथुन लग्न में बिभिन्न भाव के स्वामियों की स्थिति इस तरह होती है|

लग्न

राशि/भाव

शुभ ग्रह

त्रिषडायेश

दुःस्थान के स्वामी

मारक

बाधक

योगकारक

1

1, 5, 9

3,6,11

6,8,12

2,7

11,9,7

मिथुन

3

शुक्र, बुध शनि

सूर्य, मंगल

-

चन्द्रमा और गुरु

गुरु

-

 त्रिकोडेश होने की वजह से शनि और शुक्र की इतर राशि दुःस्थान में होने पर भी इनको शुभ माना जाता है|

कर्क लग्न

अगर आपकी कुंडली के पहले भाव में 4 संख्या लिखी है तो आप कर्क लग्न के हैं|

कर्क लग्न में बिभिन्न भाव के स्वामियों की स्थिति इस तरह होती है|

लग्न

राशि/भाव

शुभ ग्रह

त्रिषडायेश

दुःस्थान के स्वामी

मारक

बाधक

योगकारक

 

1

1, 5, 9

3,6,11

6,8,12

2,7

11,9,7

 

कर्क

4

गुरु, मंगल चन्द्रमा

बुध, शुक्र

शनि, बुध

सूर्य, शनि

शुक्र

मंगल

 

बुध दुःस्थान का स्वामी होने के साथ त्रिक भाव का भी स्वामी होने से अति अशुभ है|

गुरु त्रिकोणेश होने की वजह से छठवें भाव का स्वामी होने पर भी शुभ माना जाता है|


सिंह लग्न

अगर आपकी कुंडली के पहले भाव में 5 संख्या लिखी है तो आप सिंह लग्न के हैं|



सिंह लग्न में बिभिन्न भाव के स्वामियों की स्थिति इस तरह होती है|

लग्न

राशि/भाव

शुभ ग्रह

त्रिषडायेश

दुःस्थान के स्वामी

मारक

बाधक

योगकारक

 

1

1, 5, 9

3,6,11

6,8,12

2,7

11,9,7

 

सिंह

5

सूर्य, गुरु, मंगल

शुक्र, बुध,शनि

शनि, चद्र्मा

बुध, शनि

-

मंगल

 

स्थिर लग्न होने के कारण मंगल मारक होता है लेकिन योगकारक होने की वजह से मारक नहीं माना जाता|                                                            

बुध और शनि इस लग्न में विशेष अशुभ माने जाते हैं|


कन्या लग्न

अगर आपकी कुंडली के पहले भाव में 6 संख्या लिखी है तो आप कन्या लग्न के हैं|


कन्या लग्न में बिभिन्न भाव के स्वामियों की स्थिति इस तरह होती है|

लग्न

राशि/भाव

शुभ ग्रह

त्रिषडायेश

दुःस्थान के स्वामी

मारक

बाधक

योगकारक

 

1

1, 5, 9

3,6,11

6,8,12

2,7

11,9,7

 

कन्या

6

बुध, शनि, शुक्र

मंगल चन्द्रमा

मंगल, सूर्य

गुरु

गुरु

-

 शनि त्रिकोणेश होने से शुभ है लेकिन षष्टेश होने से नुकसान भी कर सकता है|


तुला लग्न

अगर आपकी कुंडली के पहले भाव में 7 संख्या लिखी है तो आप तुला लग्न के हैं|



तुला लग्न में बिभिन्न भाव के स्वामियों की स्थिति इस तरह होती है|

लग्न

 

राशि/भाव

शुभ ग्रह

त्रिषडायेश

दुःस्थान के स्वामी

मारक

बाधक

योगकारक

 

 

1

1, 5, 9

3,6,11

6,8,12

2,7

11,9,7

 

तुला

 

7

शुक्र, शनि, बुध

गुरु, सूर्य

गुरु,

मंगल

सूर्य 

शनि

 

शुक्र अष्टमेश होते हुए भी लग्नेश होने की वजह से अशुभ नहीं है|


वृश्चिक लग्न

अगर आपकी कुंडली के पहले भाव में 8 संख्या लिखी है तो आप वृश्चिक लग्न के हैं|


वृश्चिक लग्न में बिभिन्न भाव के स्वामियों की स्थिति इस तरह होती है|

लग्न

राशि/भाव

शुभ ग्रह

त्रिषडायेश

दुःस्थान के स्वामी

मारक

बाधक

योगकारक

 

1

1, 5, 9

3,6,11

6,8,12

2,7

11,9,7

 

वृश्चिक

8

मंगल, गुरु, चन्द्रमा

शनि, बुध

बुध, शुक्र

शुक्र

 

 

चन्द्रमा त्रिकोणेश होने की वजह से बाधक नहीं बनेगा|

सूर्य केन्द्राधिपति दोष होने की वजह से सम हो जाता है|


धनु लग्न

अगर आपकी कुंडली के पहले भाव में 9 संख्या लिखी है तो आप धनु लग्न के हैं|


धनु लग्न में बिभिन्न भाव के स्वामियों की स्थिति इस तरह होती है|

लग्न

राशि/भाव

शुभ ग्रह

त्रिषडायेश

दुःस्थान के स्वामी

मारक

बाधक

योगकारक

 

1

1, 5, 9

3,6,11

6,8,12

2,7

11,9,7

 

धनु

9

गुरु, मंगल, सूर्य

शनि, शुक्र

शुक्र, चन्द्रमा  

शनि, बुध

बुध

-

 

मकर लग्न

अगर आपकी कुंडली के पहले भाव में 10 संख्या लिखी है तो आप मकर लग्न के हैं|



मकर  लग्न में बिभिन्न भाव के स्वामियों की स्थिति इस तरह होती है|

लग्न

राशि/भाव

शुभ ग्रह

त्रिषडायेश

दुःस्थान के स्वामी

मारक

बाधक

योगकारक

 

1

1, 5, 9

3,6,11

6,8,12

2,7

11,9,7

 

मकर

10

शनि, शुक्र, बुध

गुरु, मंगल

सूर्य, गुरु

चन्द्रमा

मंगल

शुक्र

त्रिकोणेश होने की वजह से बुध अशुभ नहीं होता|


कुम्भ लग्न

अगर आपकी कुंडली के पहले भाव में 11 संख्या लिखी है तो आप कुम्भ लग्न के हैं|



कुम्भ  लग्न में बिभिन्न भाव के स्वामियों की स्थिति इस तरह होती है|

लग्न

राशि/भाव

शुभ ग्रह

त्रिषडायेश

दुःस्थान के स्वामी

मारक

बाधक

योगकारक

 

1

1, 5, 9

3,6,11

6,8,12

2,7

11,9,7

 

कुम्भ

11

शनि, बुध, शुक्र

मंगल, चन्द्रमा, गुरु

चन्द्रमा

शनि, सूर्य

-

शुक्र

शुक्र योगकारक होने की वजह से बाधक नहीं होता|


मीन लग्न

अगर आपकी कुंडली के पहले भाव में 12 संख्या लिखी है तो आप मीन लग्न के हैं|



मीन  लग्न में बिभिन्न भाव के स्वामियों की स्थिति इस तरह होती है|

लग्न

राशि/भाव

शुभ ग्रह

त्रिषडायेश

दुःस्थान के स्वामी

मारक

बाधक

योगकारक

 

1

1, 5, 9

3,6,11

6,8,12

2,7

11,9,7

 

मीन

12

गुरु, चद्र्मा, मंगल

शुक्र, सूर्य, शनि

सूर्य, शुक्र, शनि

बुध

बुध

 


आशा है आप लग्न के अनुसार आप अपनी कुंडली के मुख्य ग्रहों को समझ गए होंगे | इन्ही ग्रहो से सम्बंधित उपाय से आप अपने जीवन में नयी ऊर्जा ला सकते हैं | 


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