टाटा : भारत के सच्चे रतन ?

टाटा : भारत के सच्चे रतन ?



वैसे तो भारत में बहुत सारे बड़े और मझोले किस्म के उद्योगपति हैं कई तो पुरे विश्व की रैंकिंग में अपना स्थान रखते हैं लेकिन टाटा ग्रुप का अपना एक अलग स्थान है। जब भी टाटा ग्रुप का नाम कही पर भी चर्चा में आता हैं तो एक सम्मान की भावना अपने आप मन में आ जाती हैं।  एक सकारात्मक वाइब्रेशन मन के आसपास महसूस होने लगता हैं।  क्या यह सिर्फ इसलिए हैं कि टाटा ग्रुप की कम्पनिया बहुत सारे सेक्टर में काम कर रही हैं या सरकार को अच्छा टैक्स देती हैं ? शायद नहीं। आइये कुछ ऐसी बातों कि चर्चा करते हैं जोकि टाटा ग्रुप को बाकी लोगो से अलग बनाता हैं। जो टाटा ग्रुप को उन ऊचाइंयों पर रखता हैं जहां बाकी लोग बहुत धनी होते हुए भी नहीं पहुंच पाते।

स्वार्थ रहित सोच और समाज के प्रति दायित्व का निर्वहन

सामान्यतया यह देखा जाता है कि ज्यादातर व्यापारिक घराने उन्ही व्यवसाय को चलाने या बढ़ाने में रूचि रखते हैं जिसमे मुनाफा ज्यादा हो।  अगर मुनाफा कम हुआ तो वो उसको चलाने में रूचि नहीं रखते भले ही उसमें कितने भी लोग जुड़े हो या उनसे समाज को कितना भी फायदा हो।  लेकिन टाटा ग्रुप पर यह बात लागू नहीं होती। मुनाफा कम होने की अवस्था में भी टाटा ग्रुप सामान्यतया उद्योग को चलाता रहता हैं और पूरा प्रयास करता हैं कि किस तरह से उत्पादकता बढ़ाई जाये।  किसी भी उद्योग से उस पूरे एरिया या बाजार की अर्थव्यवस्था जुडी होती हैं अतः टाटा ग्रुप समाज के इस रिश्ते को बहुत ही उदार ह्रदय से सम्मान करता और निभाता है।

देश में कही भी कोई बड़ी घटना या दुर्घटना जैसे कि बाढ़, भूकंप, सुनामी या किसी दूसरे देश से टकराव की अवस्था में टाटा ग्रुप हमेशा आर्थिक सहायता में अग्रणी रहता है।

पाकिस्तानी आतंकवादियों ने २६/११/२००८ में मुंबई पर भीषण हमला कर दिया था।  जिसमे उन्होंने टाटा ग्रुप के होटल ताज को भी निशाना बनाया बहुत से लोग मारे गए जिसमे होटल के मैनेजर कर्मबीर कंग का परिवार भी था।  होटल की मरम्मत में कई महीने लग गए लेकिन फिर भी सभी कर्मचारियों  को समय से वेतन दिया गया।  व्यक्तिगत क्षति के बावजूद जब होटल शुरू हुआ तो वही मैनेजर अपनी टीम को लीड करने के लिए सबसे आगे दिखे।  और तो और बाहर आस पास रोड पर छोटी मोटी दुकान लगाने वालो को भी आर्थिक सहायता दी गयी।  यह मानवता के प्रति टाटा ग्रुप का संस्कार अनुकरणीय है।

नियम कानून का अनुपालन

हमने नहीं पढ़ा की टाटा ग्रुप ने लाभ अर्जित करने कि लिए किसी अधिकारी या सरकार को कोई रिश्वत दी हो। भारत जैसे नौकरशाही वाले देश में  जंहा पर घोटाले रिश्वत और सरकारी अधिकारीयों और नेताओ से सांठ गांठ क़े बिना काम नहीं चलता ऐसे में यह अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि हैं |

नवपरिवर्तन के सूत्रधार

बताया जाता है कि टाटा ग्रुप कार के बाजार में जब प्रवेश करने वाला था तो रतन टाटा कार की टेक्नोलॉजी के लिए यूरोप गए थे।  वंहा  पर बड़ी कार निर्माताओं जैसे की जगुआर और लैंडरोवर के निर्माताओ ने भारत के किसी व्यापारी के कार बनाने के प्रयास का मजाक उड़ाया था।  लेकिन समय का चक्र कैसे घूमता है यह सभी ने देखा, आज जगुआर और लैंडरोवर टाटा ग्रुप की कम्पनियाँ है।  पिछले कुछ सालो में टाटा ग्रुप ने बहुत अच्छे अच्छे कार के मॉडल बाजार में उतारे हैं।
अभी भी रतन टाटा कई स्टार्ट-अप को वित्तीय सहयोग देते रहते हैं।

अपने मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता –

मैंने कभी टाटा ग्रुप में काम तो नहीं किया हैं लेकिन मीडिया के द्वारा प्राप्त समाचारो से यह महसूस हुआ हैं कि टाटा ग्रुप में मानव मूल्यों को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता हैं।  चाहे वो मजदूर या अन्य कार्यकारी लोगो को मिलाने वाली सुविधाओ की बात हो या उनकी सुरक्षा से सम्बंधित जरूरते हो हर जगह टाटा ग्रुप अपने आप में एक बेमिशाल उदाहरण है।  और खास बात यह है कि ये मूल्य सिर्फ  लोगो को दिखाने के लिए कागजो में नहीं लिखे है या दिवार में उकेरे गए बल्कि लोगो के मन और मस्तिष्क में पिरोये गए है।  जंहा पर सभी को एक परिवार समझने कि भावना है एक सच्ची भावना एक अपनापन।  शायद आपको भी बहुत काम लोग मिलेंगे जो टाटा ग्रुप छोड़ कर कही और नौकरी करने जाते हों।

सुरक्षा सम्बन्धी उपाय

अभी कुछ साल पहले टाटा ग्रुप ने एक स्टील फैक्ट्री को खरीदा खरीदने के बाद जैसे मजदूरों की जिंदगी में एक नयी ऊर्जा का संचार हों गया।  सभी को हेलमेट, ग्लव्स, सेफ्टी शूज और कान की लीड (जिसको लगाने से तेज आवाज से कान की हिफाजत होती है) सब मिली।  हेलमेट लगाना आवश्यक बनाया गया।  पहले ये सुविधाएं नहीं थी।  ये सब मिलने के बाद कर्मचारी और उनके परिवार वालो की ख़ुशी और संतुष्टि बहुत अलग किस्म की महसूस हुई।  इससे लोगो की काम करने की इच्छा बहुत मजबूत हुई।  मुझे पूरी उम्मीद है कि उनके काम के परफॉरमेंस में बहुत अंतर आया होगा।

काम और व्यक्तिगत जीवन में संतुलन

इसी फैक्ट्री में पहले १२ घंटे काम करने पड़ते थे। लेकिन बाद में उनकी प्रतिदिन कि कार्यावधि घटा कर ८:३० घंटे कर दी गयी। यह बात पढ़ने में बहुत सामान्य लग सकती है लेकन इसके लिए मैनेजमेंट को अतिरिक्त कर्मचारी लेने पड़े होंगे और इस परिक्रिया में लागत भी बढ़ी होगी। जोकि एक बीमार यूनिट के लिए खर्चे बढ़ाने वाला फैसला लगता है लेकिन टाटा को अपने मूल्य लाभ हानि से ज्यादा मायने रखते है। तो क्यों न मन ऐसे ग्रुप को अभिवादन करे।

मैंने सुधा नारायण मूर्ति का एक लेख पढ़ा था जिसमे उन्होंने अपना अनुभव बताया था कि किस तरह उन्होंने एक पत्र लिखा और उसको टाटा के शीर्ष नेतृत्व ने संज्ञान लिया और उन्हें एक इंजीनियर के रूप में फ्लोर ड्यूटी पर उनकी नियुक्ति की।  एक तरीके से यह उनके नियमो में बदलाव था क्यूंकि उस समय महिलाओ की नियुक्ति फैक्ट्री में शॉप फ्लोर पर नहीं होती थी। इससे यह बात साबित होती है कि यह ग्रुप समय के साथ अपने आपको बदलता रहता है। फिर एक बार सुधा मूर्ति अपने पति का इंतजार कर रही थीं जो कि उसी यूनिट में काम करते थे तो जमशेद जी ने उनसे कहा कि उनके पति को समय से घर जाना चाहिए। इन बातों में अपने कर्मचारियों के बारे में मैनेजमेंट की एक आदर्श सोच और सुरक्षा की प्रतिबद्धता दिखाई देती है।

नौकरी की सुरक्षा

मार्च के महीने में जब कोरोना वायरस ने पूरे दुनिया में कहर बरपाना शुरू किया था तो प्रधान मंत्री ने कोरोना योद्धाओ का हौसला बढ़ाने के लिए ताली और थाली बजाने का आह्वान किया था। उसमें रतन टाटा भी शामिल हुए। बाद में जब बहुत से व्यापारिक घरानो ने कर्मचारियों की छटनी शुरू कर दी तो रतन टाटा ने सबको फटकार भी लगाई और उनको कर्मचारियों के योगदान को न भुलाने की नसीहत दी। आज के दिनों में जब दुनिया स्वार्थ में अंधी हो चुकी हैं।  कम्पनियाँ अपने ही अंदर काम के माहौल को ख़राब करने की तरह तरह के तिकड़मों को पसंद करती हैं जैसे कि जो लोग दूसरे की पीठ पीछे बुराई नहीं करते, सभी का सहयोग करते हैं ऐसे लोगो को परेशान करना , उनके विरुद्ध साजिश करना, उनको आर्थिक नुक्सान पहुंचना , उन्हें हतोत्साहित करना और उनको कंपनी से येन केन प्रकारेण बाहर करना। जो लोग सभी की बुराई करें, सभी में कमी ढूढ़े और अपने तिकड़मों से सभी को परेशान करके रखे ऐसे लोगो को आगे बढ़ाना, उनको तरक्की देना और उन्ही को आर्गेनाईजेशन का अप्रत्यक्ष रूप से करता धर्ता बना देना।

ऐसे व्यापारिक घरानो को रतन टाटा से शिक्षा लेनी चाहिए। क्युकि प्रकृति का नियम बहुत सरल हैं। जो बोया जाता हैं वही कटा जाता हैं। अगर हम अच्छा माहौल रखेंगे, लोगो से सहयोग करेंगे, इनोवेशन क़ेलिए लोगो को प्रेरित करेंगे तभी विकास करेंगे। अन्यथा अनुभव करके फिर सुधरने में पूरी जिंदगी खप जाती हैं।
आज तक भारत रत्न बहुतो को मिल चुका हैं लेकिन भारत क़े टाटा अपने आप में रतन हैं जो अनगिनत लोगो क़े दिलो पर राज करते हैं एक सच्चे मानवतावादी हीरो क़े रूप में।

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2 Comments

  1. I think shree Ratan Tata ji is one of the great freedom fighter for the economic growth of our nation who fight very efficiently with several type of business problems and also he make huge contribution in growth of our nation.
    We learn more for him

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