देश में सामाजिक सुचिता और सहभागिता की आवश्यकता

देश में सामाजिक सुचिता और सहभागिता की आवश्यकता





दलितों को अपनाना है,
देश को विभाजन से बचाना है !

दिनांक  9 फ़रवरी को संत रविदास जी की जयंती थी | यह पर्व सभी जगहों पर बहुत धूम धाम से मनाया गया | कई जगहों पर सह भोज और भजन के कार्य क्रम हुए | इस पर्व का सामूहिक रूप से मनाया जाना स्वागत योग्य कदम है ।

सभी जन प्रशंसा और अभिनंदन के पात्र हैं । लेकिन  सामाजिक समरसता के लिए इतना भर पर्याप्त नहीं है । मैं पहले से भी कहता  आ रहा हूं कि इसके लिए बड़े स्तर पर एक जन - जागरण अभियान की आवश्यकता है जिससे हम सर्व समाज को शास्त्रोंक्त रीति से ये अनुभूति करा सकें कि सृष्टि के आदि में हिन्दू - सनातन धर्म में  हम सभी विराट - स्वरुप भगवान के नाभि कमल से उत्पन्न  ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि रचना स्वरूप उत्पन्न दस ऋषियों ( मानस पुत्रों) की ही सन्तान हैं ।
 --( श्रीमद्भागवत - भगवान श्रीवेदव्यास जी द्वारा रचित )

रोचक बात तो ये है कि - सारे वेद - पुराण, शास्त्रों और महाभारत जिसे  कि पांचवां वेद माना गया है की रचना भगवान वेदव्यास जी ने की है जिनका पालन - पोषण एक दलित ( मल्लाह) के घर हुआ था । इसके इतर   सृष्टि की प्राचीनतम रचना वाल्मिकी - रामायण महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई जो कि निम्नवर्गीय दलित समुदाय से ही आते थे । नीति - शास्त्र के ज्ञाता महात्मा विदुर भी दासी पुत्र थे । यहां तक कि बह्मर्षि नारद भी पूर्व जन्म में दासी पुत्र ही थे ।

कालान्तर में भी निषादराज गुह और शबरी जैसे भक्त हुए तो  संत कबीर,महात्मा बिरसा मुंडा, महात्मा ज्योतिबा फुले, और बाबा साहेब आंबेडकर जैसे आदि अनेक महापुरुष दलित समाज में पैदा हुए जिनके द्वारा देश और समाज के लिए किया गया अप्रतिम योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता है ।

विडम्बना तो ये है कि जिनके द्वारा धर्म - शास्त्रों की रचना की गई उसी वर्ग ( दलितों) के लोगों को इन्हें छूने और पढ़ने से मना किया गया ।

कालान्तर में महाराज मनु के द्वारा राज - काज को सुचारू और व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए वर्णाश्रम ( वर्ण - व्यवस्था) की रचना (मनुस्मृति में) की गई । लेकिन विदेशी आक्रांताओं और दूसरे धर्मो के लोगों ने इस वर्ण - व्यवस्था को बहु - संख्यक हिन्दू - समाज पर शासन करने और अपने धर्म के विस्तार के लिए एक हथियार ( tool ) के रूप में इस्तेमाल किया  । एक - दूसरे को घृणा और वैमनस्य में बांट दिया और वर्णाश्रम को एक जाति की निरंकुश बेड़ियों में जकड़ दिया ।

किसी धर्म  या समाज का उत्थान उसी धर्म या समाज के विभिन्न महापुरुषों द्वारा किया जाता रहा है जैसे हमारे समाज ने  भी सती प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, नारी - अशिक्षा आदि  के खिलाफ जन - जागरण अभियान  और कानून बना कर किया ।

जिन धर्मों  और सम्प्रदायों ने अपनी कुरीतियों का उन्मूलन नहीं किया वे आज विनाश के मुहाने पर खड़े हैं और कालान्तर में नष्ट हो ही जायेंगे ।

लेकिन हमारा धर्म और देश तो सनातन और अनादि है ।
 इसमें समय के साथ आई हुई  संकीर्णता को तो हमें मिल जुलकर ही दूर करना होगा ।

अंग्रेजों से आजादी के कुछ साल पहले भी मुस्लिम लीग, वामपंथी दलों और जिन्ना ने कुछ दलित वर्गों को ऐसे ही शब्ज बाग दिखाए थे कि धर्म के आधार पर बनने वाला नया देश पाकिस्तान एक स्वप्न - लोक ( paradise) होगा, जहां न ऊच - नीच का कोई भेद होगा और न वैमनस्य - घृणा का वातावरण होगा । विडम्बना ये रही कि उनके इस झांसे में जोगेन्दर मण्डल सरीखे नेता भी आ गये जिनका राजनैतिक कद बाबा साहेब आंबेडकर से भी ऊंचा था । इस घटनाक्रम में कुछ दलित भू - भाग भी पाकिस्तान में मिला दिये गये और कुछ ही साल बाद पाकिस्तान ( पूर्वी एवं पश्चिमी) में दलितों पर हुए अत्याचार, नरसंहार और भेदभाव के चलते जोगेन्दर मण्डल को कानून मंत्री सरीखा पद छोड़कर भारत वापस  आना पड़ा और गुमनामी की ज़िंदगी में बंगाल में उनका निधन हो गया । इतिहास में आज जोगेन्दर मण्डल जैसे प्रतिभावान को भी कोई नहीं जानता क्योंकि उन्होंने देश,समाज और धर्म के साथ गद्दारी की थी जिसकी सजा उन्हें तुरंत मिली और उनका नारकीय जीवन बिताकर अन्त हुआ ।

आज ठीक उसी तरह से कट्टर   पंथी इस्लामी, विदेशी ताकतें जो भारत की बढ़ती ताकत से डरे हुए हैं एवं वामपंथी संगठन  देश के दलितों को अपनाकर ठीक उसी तरह का गठजोड़ बना रहे हैं जैसा कि उन्होंने आजादी से पहले बनाने की कोशिश की थी । जिसे बाबा साहेब आंबेडकर के रहते  जिन्ना  परवान नहीं चढ़ा सके थे ।
( ध्यान रहे कि विभाजन के बाद जो मुस्लिम लीग वाले यहां किसी मजबूरी या मोहबस रह गये थे वो सब बाद में वामपंथी और कांग्रेसी हो गये) ।

आज  वही कट्टर पंथी इस्लामी जिहादी, वामपंथी अरबन - नक्सली और पाकिस्तान - चीन जैसी विभाजन - कारी  ताकतें चन्द्र शेखर आजाद 'रावण'  जैसे दलित और कुछ कांग्रेसी नेताओं को  झांसे में लेकर   देश में अराजकता और गृह युद्ध जैसे हालात पैदा करा कर फिर से विभाजन की मंशा पाले हुए हैं । यह सब देश की सार्वभौमिकता, अखंडता और एकता  के लिए खतरा है , हम सभी को इस भावी विकराल समस्या से जूझने का प्रयास युद्ध स्तर पर करना होगा और  इसके लिए दलित वर्गों को भी विश्वास में लेना श्रेयस्कर होगा ।

अतः मानवता की रक्षा और देश में शांति और विकाश को सुनिश्चित करने के उद्देस्य को पूरा करने के लिए हमे  सभी वर्गो को साथ में लेकर चलना होगा और ऊंच नीच की भ|वना को दूर करना होगा| ताकि सभी देश के विकाश में अपना योगदान दे सके | और ऋषि मुनियो की ऐ धरती फिर से विश्व गुरु बन सके |

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6 Comments

  1. बहुत ही उत्तम संदेश है । व्यक्तिगत तौर पर हमें इसे सामाजिक समरसता का एक आंदोलन खड़ा करना होगा । इसका मतलब यह नही कि हम कही मैदान में खड़े हो जाये। हमें इसे आचरण में लाना होगा । तब जाकर यह भाव और प्रेरणा सभी व्यक्तियों परिवारों और संस्थानों में आएगा । सामान्यत: शहरो में हमें इस समस्याओ को सीधे तौर पर नही देख पाते है । लेकिन ग्रामीण अंचलों और इसमें वैमनस्य फैलाने वाले तथाकथित वामपंथीयो का षड्यंत्र तीव्र गति से चलाया जा रहा है । यहाँ पर अपने संबंधियों रिश्तेदारों आदी लोगो को बताना होगा।

    समाजिक समरसता व सद्भाव आचरण का विषय है । दलित के परिवार का सुख दुख मेरा सुख दुख है । वह सिर्फ और सिर्फ हिन्दू है । न की कोई जाती विशेष वर्ग सर है ।

    क्या हम कुछ छोटे छोटे कार्यो के माध्यम से इसे आचरण में लाकर समरसता अपने अपने क्षेत्र में करे । जैसे सफाई कर्मचारियों को अपने घर बुलाकर बैठाना चाय पानी आदि कराना और मात्र अपने घर नही बुलाना उनके घर भी जाना है । हम जिस संस्कृति से आते है उसमें सबमें ब्रह्म है । ऐसा मानते है । जब सबमें ब्रह्म है। तो फिर कोई कैसे एक दूसरे को अलग अलग मानता है ।

    अपनें इस समाज के विशेषकर मित्र बनाये उन्हें अपने हिन्दू धर्म से सदैव जोड़ने हेतु प्रयासरत करे । ग्राम सभा आदि में इसी बात को कहना होगा ।

    हिन्द्वव सहोदरा सर्वे , न हिन्दू पतितो भवेत,
    मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मंत्र समानता ।।

    ये समरसता मंत्र के साथ संकल्प लेकर इसे अपने अपने आचरणों व्यवहार के माध्यम से समरसता लाया जा सकता है ।

    आज सबसे ज्यादा दलितों का शोषण अगर कोई कर रहा है तो इसके तथाकथित हितैषी होने वाले नेता और जय भीम और जय मीम कहने वाले षड्यंत्रकारी अर्बन नक्सली है ।

    ईसाई मिशनरी भी सेवा के नाम पर इन्हें चिह्नित कर रही है ।
    सेवा और शिक्षा का न होना विशेष कारण है।

    मध्यप्रदेश में आदिवासियों को जनगणना में हिन्दू नही लिखवाने का षड्यंत्र किया जा रहा है ।

    भीमा कोरेगांव की घटना इन वामपंथियो की बड़ी साजिश और हिन्दू हिन्दू एक न रहे । झूठ वैमनस्य फैलाकर स्वयं प्रताड़ित कर रहे है ।

    सबका एक ही रास्ता है । कठिन है पर रास्ता एक ही है । हम सबने अपने अपने आचरण और व्यवहार से इस दूरी को मिटाना होगा ।

    धन्यवाद ।

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  2. श्रीमान योगेश जी और श्रीमान समीर जी- आप लोगो ने समाज को एक नयी दिशा देने का काम किया है| आपके विचारो को आचरण में लेन से देश में सौहार्द्र और प्रेम का वातावरण बनेगा| अतः हम सबको इस दिशा में बिना देर किये हुए कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिए| आप दोनों को समाज को दिशा देने के लिए साधुवाद|

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    1. You are correct. We should educate the peoples who doesn't read our Dharma - Shastras & the right aducation has not given by historion & Dharmacharyas.

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    2. यदि हिन्दू समाज का उत्थान करना है तो अस्पृश्यता का जड़ से निराकरण आवश्यक

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  3. Caste has divided us. I wish it should be completely abolished from our society. We should judge by talent and work not by community or caste..

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  4. हम अपनी संस्कृति भूल रहे है।सबसे पहले हमारी पहल होनी चाहिये कि हम अपने बच्चों को सही दिशा और सयुंक्त परिवार में रहने की शिक्षा दे क्योँकि आज आदमी,आदमी से दूर हो रहा है और किसी के पास समय ही नही है।
    हमे मिलकर समाज और देश की लिए काम करना चाहिए। सबसे पहले हम मनुष्य है और वर्ण cast बाद में है। हमारे संस्कार कहते है कि वसुदेवः कुटुम्बकम।
    मुझे एक फिल्मी गीत याद आता है कि हम उस देश के वासी है जिस देश मैं गंगा बहती है,जहाँ इंन्सान तो क्या पत्थर भी पूजे जाते है।
    जिस दिन हम सबको यह सच पता लग जायेगा कि मनुष्य जीवन 84 लाख योनियो के बाद मिलता है उस दिन हम वर्णो cast से नही बल्कि इंन्सान होने पर गर्व करेंगे।
    जब भगवान ने बनाते वक्त फर्क नही किया तो हम कौन होते है फर्क करने वाले।
    खाली हाथ आये थे,खाली हाथ जायंगे, कुछ अच्छा कर जाओ जिससे आनी वाली पीढ़ी और देश याद करें।
    जय हिंद ।

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