क्या शनि की साढ़ेसाती हमेशा हानिकारक होती है ?

क्या शनि की साढ़ेसाती हमेशा हानिकारक होती है ?


 नमस्ते मित्रों,

अक्सर हम सुनते हैं की साढ़ेसाती में अमुक हानि हो गयी, या परेशानी हो गयी इत्यादि इत्यादि| कहने का मतलब है की हमेशा शनि ग्रह और इसके गोचर को नकारात्मक भाव के साथ देखा जाता है| आज के इस अध्याय में हम शनि से सम्बंधित तमाम भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास करेगें|  इसके क्रम में हम शनि के कार्यकत्व, उनका हमारे जीवन में प्रभाव, उनके गोचर से सम्बंधित बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करेंगे| आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह जानकारी सभी के लिए बहुत ही उपयोगी होगी|

 

शनि ग्रह का गोचर

शनि ग्रह ब्रह्मांड का सबसे बाह्य ग्रह (आउटर प्लेनेट) माना जाता है जो की पूरे भचक्र का चक्कर लगभग ३० सालों में लगाता है| अर्थात यह एक साल में लगभग ढाई साल रहता है| स्वाभाविक सी बात है की जिस भाव में शनि को गोचर होता है उससे सम्बंधित प्रभाव लम्बे समय तक मनुष्य के ऊपर पड़ता है|

 

शनि काल पुरुष की कुंडली के दशम और एकादश भाव के स्वामी होते हैं| मुख्यतया ये हमारे कर्म और कर्मफल के कारक होते हैं| संभवतः इसी लिए इनको नैसर्गिक क्रूर ग्रह माना जाता है| अब सवाल उठ्ता है कि क्या ये मानव जीवन पर हमेशा नकारात्मक प्रभाव ही डालते हैं?

 

सभी क्रूर ग्रहों को कुंडली के तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में अच्छा माना गया है| कुंडली के तीसरे भाव में ये जातक को साहसी, छठे भाव में शत्रुहंता और ग्यारहवें भाव में अच्छी आय देने वाला माना जाता है| एक तरफ शनि सप्तम भाव में उच्च के होकर वैवाहिक संबंधो की एक अलग परिभाषा लिखते हैं वहीं लग्न में नीच के होकर शारीरिक कष्ट का कारण बनते है| मृत्यु के अष्टम भाव में बैठ कर शनि जातक को लम्बी आयु भी देते हैं|

 

उपरोक्त बातों से हमें यह आभास होता है कि शनि हमेशा नुकसान नहीं कराते| यहाँ एक बात यह समझने की जरुरत है की कुंडली के अन्य भावों में भी क्रूर ग्रह भौतिक लाभ देते हैं किन्तु जीव की हानि कराते हैं|

साढ़ेसाती या ढैया क्या है ?

जैसे की हम समझ चुके हैं की शनि का गोचर किसी भी राशि या भाव में लगभग ढाई वर्ष तक के लिए होता है| ये सबसे मंद गति से चलने वाला ग्रह है और इनका प्रभाव अपनी गोचर राशि से एक घर पीछे से एक घर आगे तक होता है| इस तरह से एक समय में ये तीन राशियो को प्रभावित करते हैं| जब ये किसी भी जातक की चंद्र राशि से एक राशि पीछे होते हैं तभी मनुष्य को इनका प्रभाव मह्सूस होने लगता है और चंद्र राशि से अगली राशि तक रहता है| इन्ही तीन राशियों का  सम्मिलित समय साढ़े सात साल का होता है जिसे साढ़े साती कहा जाता है|

शनि की तीन दृष्टियाँ होती हैं - तीसरी, सातवीं  और ग्यारहवीं| जब गोचर करते हुए शनि की दृष्टि चंद्र राशि पर पड़ती है तब ढाई साल की उस अवधि को ढैया कहते हैं|

 

क्या साढ़ेसाती या ढैया का प्रभाव हमेशा ख़राब होता है ?

मनुष्य के शरीर में उसका मन सबसे तेज चलने वाला और सबसे कोमल हिस्सा होता है| मनुष्य के मन पर चन्द्रमा का आधिपत्य होता है| जब उसके ऊपर शनि जैसा मंदगति विशालकाय ग्रह गोचर करता है तो स्वाभाविक रूप से प्रभाव पड़ता है| सामान्यतया मन रुपी चन्द्रमा का झुकाव ज्यादातर भौतिक चीजों की ओर रहता है इस परिस्थिति में सन्यास और विरक्ति का कारक शनि जब गोचर करता है तो मन का विचलित होना स्वाभाविक है| आयुर्वेद में शनि और चंद्र के योग को विष योग भी कहते हैं|

 

लेकिन इसका प्रभाव हमेशा नुक्सान दायक ही नहीं होता| अगर शनि केंद्र या त्रिकोण का स्वामी है तो कई परिस्थितियों में यह राजयोग भी बनाता है| वृषभ और तुला लग्न वालों के लिए तो ये विशेष रूप से योग कारक होता है|  अब सवाल उठता है कि शनि की साढ़े साती का प्रभाव अच्छा रहेगा या ख़राब यह आसानी से कैसे जाना जा सकता है| आइये हम आपको एक बहुत ही आसान तरीका बताते है जिससे आप आसानी से साढ़ेसाती के प्रभाव को समझ पाएंगे|

 

आप किसी भी कंप्यूटर प्रोग्राम जैसे की जगन्नाथ होरा इत्यादि में अपनी कुंडली का अष्टकवर्ग खोलें| वह कुछ इस तरह दिखाई देगी|

कुंडली


सर्वाष्टकवर्ग



१) उसमे शनि स्थित भाव में बिन्दुओ की संख्या देखे| अगर उस भाव में २८ से अधिक बिंदु हैं तो शनि आपके लिए शुभ फल दायक है| उदहारण कुंडली में शनि दसवें भाव में स्थित है जिसमे बिंदुओं की संख्या ३१ है तो शनि अच्छे परिणाम देगा|

२) इसके बाद शनि के भिन्न्ष्टक वर्ग में प्राप्त बिंदुओं को देखें | अगर ४ या अधिक बिंदु हैं तो यह गोचर आपके लिए ठीक जायेगा| जितने अधिक बिंदु उतने अच्छे फल| उदहारण कुंडली में शनि के भिन्नाष्टक वर्ग में ५ बिंदु है यह अच्छा है|  

शनि का भिन्नाष्टकवर्ग  

३) फिर यह देखें कि उस राशि या भाव में किन किन ग्रहों ने बिंदु दिए हैं| पूरे ढाई साल के समय को ८ से भाग करने से एक ग्रह की कक्ष्या अवधि निकल आती है जोकि इस क्रम में होती है - शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध, चन्द्रमा और लग्न| एक गृह की कक्ष्या अवधि सामान्यतया ११२ दिन की होती है| जिन जिन ग्रहो ने उस भाव में बिंदु दिए हैं उस उस ग्रह की कक्ष्या अवधि में जातक को अच्छे परिणाम मिलते है|

शनि के भिन्नाष्टकवर्ग में विन्दु देने वाले ग्रह


उपरोक्त जातक की साढ़े साती में गुरु, बुध, सूर्य, शनि और लग्न की कक्ष्या अवधि अच्छी जाएगी| जबकि मंगल और शुक्र की कक्ष्या अवधि में कठिनाई होगी|

कई बार हमने लोगों को शनि की दशा में बहुत उन्नति करते हुए देखा है| कहते हैं मोदी जी भी साढ़े साती में ही प्रधान मंत्री बने और आज भारत की आध्यात्मिक ध्वजा को पूरे विश्व में मान सम्मान दिला रहे हैं| मित्रों हमें ग्रहों से डरने की नहीं बल्कि उनको समझने की जरुरत है| जो शक्ति ग्रहो के पास है वही शक्ति हमारे पास भी होती है| वेदों की आंख ज्योतिष हमेशा हमारा मार्ग दर्शन करती रही है और आगे भी करती रहेगी | आपका जीवन सुखमय हो|

समस्त लोका: सुखिनो भवन्तु | ॐ शांतिः शांति शांतिः

Post a Comment

0 Comments