क्या आपकी कुंडली में राजयोग है?

क्या आपकी कुंडली में राजयोग है?

 


राजयोग  कुंडली की वह शक्ति है जो एक साधारण से साधारण जातक को जीवन में उच्च पदवी, जिम्मेदारी तेज, अधिकार और मानसम्मान प्रदान करता है| ऐसे अनेक उदाहरण आपको मिल जायेगे जहां आप ऐसे जातक को जीवन में आशातीत सफलता पाते देखते होगे|

कौन सा ग्रह राजयोग दे सकता है ?

जब कोई ग्रह बली अवस्था में निम्नलिखित प्रकार से परस्पर दृष्टि युति या स्थान परिवर्तन का सम्बन्ध बनायें तो, राजयोग प्रदान करते हैं|

- अपनी उच्च, मूलत्रिकोण, स्वराशि या मित्र ग्रह की राशि में स्थिति हों

- केंद्र या त्रिकोण भाव में स्थित ग्रह

- वर्गोत्तम ग्रह अर्थात जन्मकुंडली और नवांश कुंडली दोनों में एक ही राशि में स्थित ग्रह

- शुभ ग्रहो से युक्त, दृष्ट या शुभ कर्तरी में हों

- उच्च राशि की ओर बढ़ते आरोही ग्रह

- योग कारक ग्रह (मंगल, शुक्र या शनि) क्रमशः कर्क-सिंह, मकर-कुम्भ या वृष-तुला) लग्न में

  ये सभी ग्रह राजयोग देकर अपनी दशा भुक्ति में धन, मान, यश अथवा सत्तासुख प्रदान करते हैं|

राजयोग कैसे बनता है ?

Ø  जब कुंडली में पंचमेश और नवमेश सम्बन्ध स्थापित करें तो राज्य की प्राप्ति होती है | राज्य की प्राप्ति का अर्थ हमेशा सिंहासन ही नहीं बल्कि अधिकार, प्रभुता या सामर्थ्य होता है|

Ø  जब चतुर्थेश और दशमेश समसप्तक भाव में होते हैं तो भी जातक को राजा या उसके समान अधिकार संपन्न बनाते हैं|

Ø  जब पंचमेश और दशमेश का स्थान परिवर्तन हो और पंचमेश अथवा नवमेश से युक्त और दृष्ट हों तो जातक राज्य प्राप्त करता है| विशेषकर केंद्र राज्य सम्बन्ध होने से राजयोग का फल मिलता है|

Ø  १, ५, ९ भावों के स्वामी १, ४ या १० भाव में कही सम्बन्ध बनायें

Ø  नवम में गुरु कहीं भी स्वक्षेत्र में हो और पंचमेश से भी सम्बन्ध बनायें

Ø  जब जातक का जन्म अभिजीत मुहूर्त में हो

Ø  शुक्र और चन्द्रमा ३, ११ भाव में हो या एक  दूसरे से दृष्ट हों

Ø  यदि कुंडली में ३ या ३ से अधिक ग्रह उच्च के हों

Ø  यदि ६ ग्रह उच्च राशि में हो तो जातक राजा होता है|

Ø  लग्नेश या सप्तमेश से २, ४, ५ में शुभ ग्रह हों और ३,६ में पाप ग्रह हों तो मनुष्य राजा बनता है|

उदाहरण के तौर पर

श्रीमती इंदिरा गाँधी - योग कारक मंगल का धन भाव में स्थित जोकर पंचम और नवम भाव को देखना



 श्री जवाहर लाल नेहरू - भाग्येश गुरु का दशम भाव से और दशमेश मंगल का नवमेश और नवम भाव से सम्बन्ध

 


निम्न परिस्थितियों में राजयोग भंग  भी हो जाता है

राजयोग में शामिल ग्रह अपनी नीचस्थ हों

युद्ध में पराजित हों

शत्रुक्षेत्री हों

पापयुक्त, पापदृष्ट अथवा पाप कर्तरी में हों

वक्री, अस्तंगत अथवा राहु से युत हों

भाव अथवा राशि संधि पर स्थित हों

वर्गो में नीचस्थ, शत्रुक्षेत्री या पाप पीड़ित हों

दुःस्थान ६,८,१२ भाव में स्थित हों या इनके भावेशों से युत हों

ये सभी ग्रह राजयोग भंग करने में सक्षम होते हैं|

आप भी अपनी कुंडली देखें कही ये राजयोग आपकी भी प्रतीक्षा तो नहीं कर रहे हैं और आप इनसे अनजान हों |

Post a Comment

0 Comments