वाराही धाम शक्तिपीठ की यात्रा

वाराही धाम शक्तिपीठ की यात्रा


भारत वर्ष को सिर्फ एक भूमि का टुकड़ा नहीं अपितु एक जीवंत राष्ट्र माना जाता है क्यूंकि यह विश्व की सबसे पुरानी मानव सभ्यता है जिसमे तमाम ऋषियों और प्रबुद्ध लोगों ने अध्यात्म को न सिर्फ परिभाषित किया बल्कि उन्हें अपने जीवन में उतारा भी है| भारत वर्ष का हर कोना अपने आप में एक ऐतिहासिक धरोहर को सहेजे हुए है| चाहे नगर हो या गांव सब जगह अपने कुल देवी और देवताओ का पूजन करना और उनमे श्रद्धा रखना हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग रहा है| ये संस्कार हम अपने विरासत में पाते हैं जो एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में त्यौहारों सांस्कृतिक और सामाजिक आयोजनों के द्वारा अपने आप प्रवाहित होते रहते हैं|

 

ऋग्वेद में हमें व्रह्म सूक्तम के साथ आत्म (देवी) सूक्तम का भी उल्लेख मिलता है जिसमे सृष्टि की  शक्ति समाहित है| यह अपने आप में स्त्री और पुरुष की समानता का सबसे बड़ा उदाहरण है| दुर्गा शप्तशती का कवच पढ़ते समय बरबस दृष्टि एक श्लोक पर रुक जाती है|

आयू रक्षति वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।

यश: कीर्तिं च लक्ष्मी च धनं विद्यां च चक्रिणी।

आज जब संसार कोरोना वायरस रुपी महामारी से ग्रस्त है और प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग अपनों को खो रहे हैं | ऐसे में कवच में वर्णित देवी वाराही जो लोगो की रक्षा करती हैं का आह्वान अपने आप होने लगता है| हमारे देश में अलग अलग ५१ शक्ति पीठों का उल्लेख मिलता है लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शक्ति पीठ के बारे में बताना चाहते हैं जोकि हमारी जिंदगी का एक अहम् हिस्सा रहा है| जी हाँ हम वाराही शक्ति पीठ माँ चौहरजन देवी की बात कर रहे हैं|

Image Credit : - pratapgarhup.in

कहाँ है वाराही शक्ति पीठ ?

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में रानीगंज तहसील के परशुरामपुर गांव में एक प्राकृतिक टीले के ऊपर वाराही माँ चौहरजन देवी का मंदिर स्थिति है | यह मंदिर  इस जिले के एक बड़े हिस्से के लोगों की भक्ति, अध्यात्म और चिंतन का एक प्रमुख केंद्र है| बताया जाता है की इसका निर्माण आल्हा और ऊदल नामक दो वीर योद्धाओ ने ११वी शताब्दी में करवाया था| यह मंदिर सई नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है| मंदिर के पीछे आल्हा का एक प्राचीन कुआं भी है जहां पर वो अपने हथियार सुरक्षित करते थे| कुंए का एक हिस्सा गुफा के द्वारा नदी के पास निकलता था|

मंदिर तक पहुंचने के लिए लक्षीपुर या रानी गंज से साधन मिल जाते हैं| इस शक्तिपीठ की महत्ता को स्वीकार करते हुए प्रदेश सरकार ने पास के रेलवे स्टेशन दादूपुर का नाम वाराही धाम रखने का फैसला किया है|

 

माँ वाराही से सम्बन्ध

नदी के दूसरे छोर पर स्थित है हमारा  गांव जहां के लोगों का माँ वाराही से बेटी का रिश्ता है| लोगों का मानना है की जब औरंगजेब ने मंदिर को नुक्सान पहुंचाया था तो माँ की प्रतिमा नदी में समाहित हो गयी थी | कालांतर में माँ अपने योग्य सेवक गिरी परिवार के सम्मानित सदस्य के सपनों में आई और उन्हें अपने पुनरस्थापना के लिए प्रेरित किया | उसी समय उन्होंने हमारे गांव को अपना मायका माना था |  आज भी बहुत से लोग इस रिश्ते को निभाते हैं और नदी के उसपार मतलब चौहर्जन देवी क्षेत्र में पानी तक नहीं पीते या यूँ कहें की छोटे बच्चों को दूध भी नहीं पिलाते|

इस जीवंत रिश्ते का एक और उदाहरण है| मेरी शादी के समय जब मेरी धर्मपत्नी जी हमारे गांव आने वाली थी तो उसके पहले उन्होंने सपना देखा की वो एक मंदिर में दर्शन करने गयी हैं उस समय वह उसका मतलब नहीं समझ सकी | जब हम माँ के मंदिर में गए तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा | वैसे ही ऊँची ऊँची सीढ़ियां, मंदिर और माँ का वात्सल्य और नदी का किनारा  |   

घर में कोई भी कार्यक्रम हो, हर सुख दुख में माँ वाराही साथ होती हैं | चाहे परीक्षा की तैयारी हो, नौकरी के आवेदन हो, घर की नींव रखनी हो या कोई तीर्थ यात्रा करनी हो हर काम माँ की शक्ति साथ होती है|

हमारे बचपन में सड़कें और पुल नहीं थे | नाव से नदी पार करनी पड़ती थी | और बच्चों की तरह मैं भी अपनी माँ के साथ मंदिर जाने को उत्सुक रहता था| एक दो बार नाव डूबने की छोटी मोटी घटनाओ से मुझे डर लगने लगा लेकिन परिवार के लोगों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं आयी|  आज भी गांव के करीब करीब हर परिवार का कोई न कोई सदस्य हर सोमवार को माँ का दर्शन करने जाता है|

 

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नवरात्र की महत्ता

हर सोमवार और शुक्रवार को यहाँ मेला लगता है जिसमे दर्शन, मुंडन और पूजा पाठ के कार्यक्रम होते हैं|

नवरात्र में पहले हवन और पूजन के विशेष प्रबंध किये जाते थे| पंडित लोग दुर्गा शप्त शती का पाठ करते थे| बाबा सूचित गिरी जी जो कि हम लोगो को अपने परिवार के सदस्यों की तरह प्यार करते थे, मंत्रोचार के साथ विधिवत हवन करवाते थे| कितनी बार मंदिर में बहुत भीड़ से घबराहट हो जाती थी लेकिन हर बार वो भीड़ में भी हमारे लिए दर्शन की जगह बनाते थे|

अब कुछ सालों से मंदिर में सांस्कृतिक कार्यक्रम और भंडारे होने लगे हैं | कई सालों पहले मंदिर प्रांगण में सहस्त्र चंडी और शत चंडी यज्ञ के भी आयोजन हो चुके हैं|


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वाराही मंदिर क्षेत्र का विकास 

बिगत कुछ सालों से बीजेपी सरकार के विधायकों श्री शिवाकांत ओझा और श्री धीरज ओझा के प्रयासों से क्षेत्र का काफी विकास हुआ है| ऊँची ऊँची सीढ़ियों को थोड़ा छोटा किया गया है| यात्री शेड और नदी की तरफ बनायीं गयी सीढ़ियों से श्रद्धालुओ को दर्शन में आराम होता है| हालाँकि श्रद्धालुओ की संख्या को देखते हुए सुविधाओ के विकास पर और ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है|

 

आइये हम भी हमारे राष्ट्र की धरोहर और भक्ति अध्यात्म और चिंतन के इन केन्द्रो के प्रति श्रद्धा व्यक्त करें और इनके विकास में अपने सहयोग दें|

माँ वाराही आपको लम्बी आयु दें और आपकी सभी मनो कामनायें पूरी करें | 

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