ऋतुराज बसंत आयो रे

ऋतुराज बसंत आयो रे



ठण्ड का प्रचंड रूप आज कहीं जायो रे

मन में उल्लास लिए आज कोई आयो रे

जवां दिलों भी अब नया अहसास जागे है 

पञ्च तत्त्व आज जाने क्यूँ अपना लागे है 


आज पवन क्यूँ अपनी ठिठुरन को छोड़े है

आज रवि  क्यूँ अपनी  आंच से भी छेड़े है

आज  नीर  प्रेम  का  पीयूष दियो जाये रे

प्रेम  का  सन्देश  ले  बसंत ऋतू आयो रे


 खेतों में सरसो के पीले फूल जागे है

धरती के रूप में क्या चार चाँद लागे है

गेहूं  की  बलिया  में आने लगे दाने हैं

फसलों को देख के किसान भी दीवाने है


महुआ के पेड़ो में पतझड़ रवानी है

नए नए पत्तो की बाग भी दीवानी है

आम के बौर की महक बड़ी निराली है

कोयल की  कूँ कूँ की धुन  मतवाली है 


प्रकृति अपने यौवन में नए रंग भर लायी

हर  श्रृंगार  पूर्ण आ ज   बाजे है  शहनाई

मन मयूर आज मोरे नाच नाच जायो है

प्रेम का सन्देश लिए ऋतुराज आयो है

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