युग पुरुष अटल जी को श्रद्धांजलि

युग पुरुष अटल जी को श्रद्धांजलि


अँधियारो  को  चीर  के  देखो  एक  परिदा  आया  था |

जन जन को विश्वाश दिलाकर सबके मन को भाया था ||

देश  के  बंटवारे  से  दुखी  वो  फूट  फूट  कर  रोया था |

स्वच्छ राजनीती सिखाने को अपनी सरकार को खोया था ||

घोर  विरोधी   भी       जिसको   माने हैं  सरल  विरल |

वह  कोई   और   नहीं    बस  अपने  सदैव  अटल  ||

 

कथनी करनी एक तरह हो, तो न हो कोई कष्ट कलेश |

परमाणु  शक्ति  संपन्न राष्ट्र से दिया यही शांति सन्देश ||

सांप को दूध पिलाओ तो भी  जहर ही वापस मिलता है |

बाजपेयी की लाहौर यात्रा से भी यही सन्देश निकलता है ||

वह  मतवाला  प्रेमी  सबको  साथ  में  लेकर  चलता  था |

लेकिन बात देश की आये तो सांप का फन भी कुचलता था ||

अच्छाई   कमजोरी  ना  हो   चाहे  हो  कोई  भी  वेश |

कारगिल  की  विजय  पताका  भी  देती है यही सन्देश ||

 

सच्ची  अभिलाषा  से   जब  करना  हो  जन हित काम |

राजनीती  राष्ट्र  सेवा   है   यह  नहीं  स्वार्थ  का  नाम |

मस्तमौला  पहचान  ही  जिसकी सबपर पड़ती भारी |

वह  कोई  और  नहीं,  सिर्फ  अपने  अटल विहारी ||

जीवन को हंस कर जीना चाहे कितना हो कठिन समर |

सबके  मन  में  यूँ  ही रहें, युग-युग अटल अजर अमर ||

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