नयी शिक्षा नीति : कितनी उद्देश्य परक

नयी शिक्षा नीति : कितनी उद्देश्य परक



प्राचीन काल से भारत एक धर्म गुरु देश रहा है।  यहाँ अनादि काल से शिक्षा का बहुत ही महत्व रहा है।  यहाँ पर शिक्षा हमेशा से सर्व सुलभ रही है। प्रायः यहाँ पर व्याकरण, गणित, साहित्य, संगीत, राजनीती शास्त्र, अर्थशास्त्र, खगोल शास्त्र, विज्ञानं, चिकित्सा शास्त्र, योग और ज्योतिष में अध्ययन होता रहा है।  जिसमे हजारो साल की खगोलीय घटनाओ की सटीकता से भविष्य की जाती थी।  सर्व सुलभ होने की वजह से हर कोई अपने रूचि के हिसाब से विषय का चुनाव कर सकता था।  तभी तो कई हज़ार साल पहले से हमारे देश में वेद, उपनिषद् चिकित्सा विज्ञानं , और ज्तोतिष इत्यादि विषयों पर अनगिनत पुस्तके लिखी गयी और देश हमेशा वैभवशाली रहा है। योग और चिकित्सा शिक्षा की अच्छी व्यवस्था होने की वजह से लोग शारीरिक  और मानसिक रूप से मजबूत थे।

गुरुकुल - भारतीय शिक्षा के केंद्र

पहले शिक्षा व्यवस्था राजकीय नियंत्रण में नहीं थी।  शिक्षा गुरुकुलों में दी जाती थी जंहा पर शिक्षकों के परिवार के साथ ही विद्यार्थी रहते थे। ये विद्यार्थी एक या कई राज्यों के हो सकते थे। शिक्षकों का जीवन सादगी पूर्ण होता था और वे समाज में अलग तरह की प्रतिष्ठा के अधिकारी थे।  शिक्षकों के व्यक्तिगत आचरण से सामान्यतया गृहस्थ और विद्यार्थी दोनों प्रेरणा लेते थे। सभी विद्यार्थी, चाहे वे कैसे भी परिवार से संबध रखते हो, एक जैसे परिवेश में रहते थे।  वंही से उनकी योग्यता के अनुसार उनके जीवन की आगे की दिशा तय होती थी।


शिक्षा के प्राचीन केंद्र

वाराणसी, कश्मीर, उज्जैन, नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला इत्यादि हमारे प्रमुख शिक्षा के केंद्र हुआ करते थे। काशी व्याकरण और साहित्य की शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। कश्मीर अलंकार शाश्त्र के लिए प्रसिद्ध था। चरक ने आरोग्य शास्त्र के अध्ययन हेतु यहाँ पर एक विश्व विद्यालय की स्थापना की थी। उज्जैन नीति विषयक अध्ययन के लिए प्रसिद्ध था। हर विश्वविद्यालय या अध्ययन केंद्र अपनी विशेषज्ञता हमेशा बनाये रखता था।  बच्चो से शिक्षकों का सीधा संवाद रहता था।  कभी भी किसी भी कठिनाई को हल करने के लिए वो कभी भी शिक्षकों से संपर्क कर सकते थे।  इस आत्मिक माहौल में बच्चो की समझने की क्षमता और स्मरण शक्ति बहुत ही बिलक्षण हो जाती थी, क्यूंकि यहाँ पर सीधा ह्रदय का ह्रदय से सम्बन्ध होता था। गुरुकुल की पूरी व्यवस्था विद्यार्थी ही सम्हालते थे और इसी परिक्रिया से गुजरने पर वे व्यावहारिक ज्ञान और दायित्व निर्वाहन के लिए तैयार हो जाते थे।

शिक्षा का देश और समाज पर प्रभाव

इसी तरह की उच्च कोटि की शिक्षा का प्रभाव था की भारत एक सुखी और समृद्ध देश था।  भारत यानि ऐसा देश जहाँ पर भाव राग और ताल सबको सुलभ थे।  लोगो के अंदर अनावश्यक लालच और वैमनस्य नहीं था।  तभी तो भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया लेकिन सबको अपने ज्ञान और प्रेम से जीता था।  हर तरह के विदेश अक्रान्ताओ की हमेशा भारत पर नजर रहती थी। लेकिन उनके मंसूबे पुरे नहीं होते थे।  विश्व विजेता सिकंदर को भी भारत में मुंह की कहानी पड़ी थी।


विदेशी आक्रांताओ द्वारा शिक्षण व्यवस्था का दमन

बाद में शनैः शनैः व्यवस्था क्षीण होती गयी और विदेशी आक्रान्तो ने भारत की शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से चौपट कर दिया।  विश्व विद्यालयों को जला दिया गया।  शिक्षकों और गुरुओ की हत्या कर दी गयी।  सभी शासको ने फिर अपने स्वार्थ के हिसाब से शिक्षा की व्यवस्था की। लोगो में ऊंच नीच की भावना विकसित हुई और सामाजिक वैमनस्य बढ़ा जोकि स्वाभाविक तौर पर विदेशी शाशन के लिए उपयुक्त था।


वर्तमान शिक्षा नीति

अभी देश में जो शिक्षा नीति चल रही है, वो 1986 में राजीव गांधी सरकार के दौरान लागू की गई थी और उसके बाद 1992 में इसमें थोड़ा बदलाव किया गया था | देश की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था मुख्यतः अंग्रेजो की देन है।  जिसमे खेल कूद और बहुत सारे विषयो को प्रमुखता नहीं मिली है।  यह एक बाजारोन्मुखी व्यवस्था की तरह दिखावे का केंद्र बन गयी जिसमे मुख्यतः लोगो को डिग्रियां तो मिल रही है लेकिन व्यावहारिक ज्ञान की भयंकर कमी है।  एक अध्ययन में यह बताया गया था की देश के दो तिहाई ग्रेजुएट किसी भी नौकरी में रखे जाने योग्य नहीं होते।


नयी शिक्षा नीति

2014 के लोकसभा चुनाव में नई शिक्षा नीति बीजेपी के घोषणपत्र का हिस्सा थी | उसी के तहत.अब मोदी सरकार ने इस नीति में बदलाव किया है.| बुनियादी शिक्षा की बात पर महात्मा गांधी ने भी कहा था कि बच्चों को हाथ से बनी चीजें को बनाना  सिखाना चाहिए | इससे उनमे सृजनात्मक कौशल का विकाश होगा। बच्चो को अपनी रूचि के अनुकूल विषय पढ़ने की आज़ादी होगी। सेमेस्टर प्रणाली लागू होने की वजह से अब बच्चे पूरे वर्ष भर पढ़ाई करेंगे। अगर कोई विद्यार्थी किसी वजह से डिग्री पूरी न कर सके तो भो उसको सर्टिफिकेट मिलेगा। मतलब कि मल्टीप्ल एंट्री और एग्जिट के विकल्प रहेंगे। बच्चो को किसी विदेशी भाषा में पढ़ने की बाध्यता नहीं रहेगी। विषयो को रटने की जगह उनको व्यावहारिक उपयोग के तरीको से समझाया जायेगा। तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दिया जायेगा और नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना होगी जो कि एक नए राष्ट्र के निर्माण के लिए बहुत सहयोगी सिद्ध होगा।


कुछ शिक्षा शास्त्रियों का मानना है की नयी शिक्षा नीति भविष्य में विद्यार्थियों को न सिर्फ मजबूत बनाएगी बल्कि देश फिर से विश्व में शिक्षा का एक केंद्र बन जायेगा। इस व्यवस्था में बच्चो को किसी विषय को जरूरी रूप में रटने की बाध्यता नहीं रहेगी।  बल्कि उनकी रूचि के अनुसार उनके कौशल का विकाश होगा और वो एक रोजगार परक शिक्षा पाएंगे।


नयी शिक्षा नीति में निहित कुछ आशंकाए

जिस तरह से हर नयी चीज में कुछ न कुछ आशंकाए रहती है वैसे ही इस नयी शिक्षा नीति में कुछ आशंकाए व्यक्त की जा रही है।  उदाहरण के तौर पर १०वी बोर्ड  को  ख़त्म करने  की  बात  कही  जा  रही  हैं  जिसका  दुष्परिणाम  यह होगा  कि  बहुत  से  बच्चे  विषय  को  आत्मसात  करके  नहीं  पढ़ेंगे।  बोर्ड  में  360 डिग्री का  मूल्याङ्कन  रखा  गया  हैं  जिसमें विद्यार्थी, उसके  दोस्त  और  शिक्षक  स्वयं  मिलकर  मूल्याङ्कन  करेंगे | इस  मूल्याङ्कन में कही  न  कही  बच्चे  का  पूर्णरूपेण  वास्तविक  मूल्याङ्कन  नहीं  हो  पायेगा  क्यूंकि  इसमें  शिक्षक  या  बच्चों  द्वारा  पक्षपात  की  संभावना  बनी  रहेंगी।  स्कूलों  द्वारा  बच्चों  के  मूल्याङ्कन  में  दिए  जाने  वाले  नंबर  के  लिए  स्कूल  बच्चो  या  अभिभावक  का  शोषण  करते  हैं  और  कहीं  न  कहीं  यही  संभावना  बनी  रहेंगी , हमारे हिसाब  से  इस  पर  विचार  करना अति आवश्यक हैं |

अंत में यह भी जरूरी है की सरकार शिक्षा के साथ साथ शिक्षकों की भी गुणवत्ता सुधारे।  क्यूंकि जिस तरह से नकली सर्टिफिकेट के आधार पर नियुक्ति पाए शिक्षकों का  कुछ राज्यों में मामला आया है उससे यह पूरी व्यवस्था संदेह के घेरे में है।  शिक्षक को अपने व्यक्तिगत व्यवहार और कर्तब्य पथ पर समर्पण के साथ उच्च आदर्श स्थापित करने होंगे।  इस काम के लिए सरकार और नौकरशाही को खुद को भी ज्यादा जिम्मेदार और पारदर्शी बनाना होगा। तभी वह देश और मानवता को एक नयी गौरवमयी दिशा देने में सक्षम होंगे।
  
Thanks You
Co-written by Seema Pandey

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